घटना का विवरण
मनीष कश्यप एक मरीज की पैरवी के लिए PMCH पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने अस्पताल की खामियों को उजागर करने के लिए वीडियो बनाना शुरू किया, जिससे ड्यूटी पर मौजूद महिला डॉक्टरों से उनकी बहस हो गई। बात इतनी बढ़ गई कि जूनियर डॉक्टरों ने मनीष कश्यप को घेर लिया, उनका मोबाइल छीन लिया और उन्हें करीब तीन घंटे तक एक कमरे में बंद कर दिया । इस दौरान उनके चेहरे पर चोट के निशान भी देखे गए।
दोनों पक्षों के आरोप
- डॉक्टरों का पक्ष: जूनियर डॉक्टरों का आरोप है कि मनीष कश्यप ने महिला डॉक्टरों के साथ अभद्रता की, जिसके चलते उन्होंने प्रतिक्रिया स्वरूप यह कदम उठाया ।
- मनीष कश्यप का पक्ष: मनीष कश्यप का कहना है कि उन्होंने कोई अभद्रता नहीं की और डॉक्टरों ने उन्हें बिना किसी कारण के बंधक बनाकर पीटा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि बिहार पुलिस समय पर नहीं पहुंचती, तो उनकी हत्या हो सकती थी ।
पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया
घटना की सूचना मिलते ही पीरबहोर थाने की पुलिस मौके पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रित किया। पुलिस ने दोनों पक्षों से पूछताछ शुरू कर दी है और मामले की निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है ।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने सोशल मीडिया पर मनीष कश्यप का समर्थन करते हुए डॉक्टरों की कार्यशैली पर सवाल उठाए। उन्होंने मनीष पर लगाए गए आरोपों को निराधार बताया और निष्पक्ष जांच की मांग की ।
निष्कर्ष
यह घटना पत्रकारिता की स्वतंत्रता, अस्पतालों में कानून-व्यवस्था और डॉक्टर-पत्रकार संबंधों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। मामले की निष्पक्ष जांच और दोनों पक्षों की जिम्मेदारी तय करना आवश्यक है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
PMCH में मनीष कश्यप की पिटाई मामले में दोनों पक्षों के आरोप इस प्रकार हैं:
डॉक्टरों का पक्ष:
- महिला डॉक्टरों से अभद्रता का आरोप:
जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि मनीष कश्यप ने वीडियो बनाते वक्त महिला डॉक्टरों से बदतमीज़ी की और उनसे बहस की। - कार्य में बाधा:
उनका आरोप है कि मनीष बिना अनुमति अस्पताल में वीडियो बनाकर उनके काम में बाधा डाल रहे थे, जिससे चिकित्सा सेवाएं प्रभावित हुईं। - जवाबी कार्रवाई:
डॉक्टरों ने दावा किया कि उन्होंने मनीष को सिर्फ़ इसीलिए रोका क्योंकि वे “उकसाने” और “अशोभनीय व्यवहार” कर रहे थे।
मनीष कश्यप का पक्ष:
- मरीज की पैरवी:
मनीष का कहना है कि वे एक गरीब मरीज के लिए न्याय मांगने और अस्पताल की लापरवाही को उजागर करने पहुंचे थे। - बिना वजह बंधक बनाया:
उन्होंने आरोप लगाया कि जूनियर डॉक्टरों ने उन्हें घेर कर बंधक बना लिया, उनका मोबाइल छीन लिया और तीन घंटे तक बंद कमरे में पीटा। - हत्या की कोशिश का आरोप:
उनका कहना है कि अगर बिहार पुलिस समय पर न आती, तो उनकी हत्या कर दी जाती।
निष्पक्ष जांच की मांग:
- पुलिस दोनों पक्षों से पूछताछ कर रही है और पूरे मामले की जांच चल रही है।
- मनीष कश्यप और डॉक्टरों दोनों ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए हैं, इसलिए प्रशासन द्वारा तटस्थ जांच की आवश्यकता है।
महिला डॉक्टरों से अभद्रता का आरोप PMCH की इस घटना का एक महत्वपूर्ण पहलू है। डॉक्टरों के अनुसार, मनीष कश्यप ने अस्पताल में वीडियो रिकॉर्डिंग के दौरान जो व्यवहार किया, वह अस्वीकार्य और अपमानजनक था। आइए विस्तार से समझें:
डॉक्टरों का आरोप क्या है?
- अनधिकृत वीडियो रिकॉर्डिंग:
मनीष कश्यप अस्पताल में बिना अनुमति के वीडियो बना रहे थे, जिससे महिला डॉक्टरों को आपत्ति हुई। - शब्दों और लहजे में अशिष्टता:
डॉक्टरों ने दावा किया कि मनीष ने सवाल-जवाब के दौरान “अपमानजनक भाषा” का प्रयोग किया और महिला डॉक्टरों को सार्वजनिक रूप से “उकसाने की कोशिश” की। - मर्यादा के उल्लंघन का आरोप:
PMCH की एक महिला रेजिडेंट डॉक्टर ने कहा कि मनीष कश्यप ने “अपनी यूट्यूब पत्रकारिता के नाम पर महिलाओं को टारगेट किया और कार्यस्थल पर उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाई”। - डॉक्टरों का सामूहिक विरोध:
इस आरोप के बाद PMCH के जूनियर डॉक्टरों ने सामूहिक रूप से मनीष का घेराव किया और उनके व्यवहार के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
क्या यह आरोप प्रमाणित है?
- अब तक महिला डॉक्टरों द्वारा कोई औपचारिक पुलिस शिकायत (FIR) सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आई है, लेकिन प्रशासनिक जांच चल रही है।
- इस घटना से जुड़ा कोई स्पष्ट वीडियो फुटेज अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है जो मनीष द्वारा की गई “अभद्रता” की पुष्टि करे।
- मनीष कश्यप ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि उन्होंने किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया।
निष्कर्ष:
इस विवाद में महिला डॉक्टरों द्वारा लगाया गया अभद्रता का आरोप गंभीर है और इसकी निष्पक्ष जांच बेहद जरूरी है — खासकर जब बात कार्यस्थल पर महिला सम्मान और सुरक्षा की हो। साथ ही, बिना साक्ष्य किसी को दोषी ठहराना भी उचित नहीं है।
कार्य में बाधा” का आरोप मनीष कश्यप पर PMCH की महिला डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा स्टाफ द्वारा लगाया गया था। इस आरोप का मतलब यह है कि उन्होंने अस्पताल के सामान्य कार्य और मरीजों की देखभाल में व्यवधान डाला। आइए विस्तार से समझते हैं:

डॉक्टरों का कहना है कि मनीष कश्यप ने…
- बिना अनुमति अस्पताल परिसर में वीडियो बनाया:
मनीष कश्यप कैमरा लेकर सीधे वार्ड में घुस गए और रिकॉर्डिंग शुरू कर दी, जो अस्पताल की कार्यप्रणाली और मरीजों की गोपनीयता के खिलाफ है। - स्टाफ से तीखे सवाल और बहस:
वीडियो में डॉक्टरों से सवाल पूछे गए जो उनके अनुसार “उकसाने वाले” और “अनुचित समय पर” किए गए, जिससे डॉक्टरी कार्य में बाधा आई। - मरीजों की सुरक्षा और इलाज में हस्तक्षेप:
डॉक्टरों का यह भी दावा है कि मनीष की उपस्थिति और रिकॉर्डिंग से कुछ मरीज असहज हो गए, और इलाज में रुकावट आई।
क्या यह “कानूनी रूप से” कार्य में बाधा है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 186 और 353 के तहत, किसी भी सरकारी कर्मचारी (जैसे डॉक्टर जो सरकारी अस्पताल में सेवा दे रहे हों) के कार्य में बाधा डालना दंडनीय अपराध हो सकता है।
- धारा 186: किसी लोक सेवक के वैध कार्य में बाधा डालना – जेल या जुर्माना या दोनों।
- धारा 353: लोक सेवक पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग – अधिक गंभीर अपराध माने जाने की स्थिति में।
मनीष कश्यप का पक्ष:
- उन्होंने कहा कि वे एक पीड़ित मरीज की शिकायत पर पहुंचे थे और उन्होंने कोई गैरकानूनी कार्य नहीं किया।
- उन्होंने दावा किया कि वे केवल लोगों की आवाज़ बनने का काम कर रहे थे, ना कि डॉक्टरों को परेशान करने का।
निष्कर्ष:
“कार्य में बाधा” का आरोप तब सही साबित हो सकता है जब:
- प्रमाणित हो जाए कि मनीष ने जानबूझकर इलाज रोकने या स्टाफ को परेशान करने का प्रयास किया।
- अस्पताल में वीडियो बनाने की कोई अनुमति नहीं थी और मनीष ने नियमों का उल्लंघन किया।
इस मामले में प्रशासनिक व पुलिस जांच के बाद ही यह तय हो पाएगा कि मनीष कश्यप सचमुच “कार्य में बाधा” के दोषी हैं या नहीं।
जवाबी कार्रवाई” उस प्रतिक्रिया को कहा जाता है जो किसी पक्ष ने दूसरे पक्ष की कथित अनुचित या उकसाने वाली हरकत के जवाब में की हो। PMCH की घटना में, डॉक्टरों की ओर से जो “जवाबी कार्रवाई” की गई, वह काफी चर्चा में रही।
डॉक्टरों की ‘जवाबी कार्रवाई’ क्या थी?
- मनीष कश्यप को घेरना:
जब मनीष कश्यप और डॉक्टरों के बीच बहस बढ़ी, तब कई जूनियर डॉक्टर एकत्रित हो गए और उन्होंने मनीष को घेर लिया। - मोबाइल फोन छीनना:
डॉक्टरों पर आरोप है कि उन्होंने मनीष का फोन छीन लिया जिससे वह वीडियो न बना सकें और उन्हें अस्पताल में एक कमरे में बंद कर दिया। - तीन घंटे तक बंधक बनाकर रखना:
मनीष का आरोप है कि डॉक्टरों ने उन्हें करीब तीन घंटे तक एक कमरे में बंद रखा और उनके साथ धक्का-मुक्की तथा मारपीट की। - चेहरे पर चोट:
मनीष के चेहरे पर चोट के निशान दिखे, जिससे यह संकेत मिलता है कि कथित तौर पर उनके साथ हाथापाई हुई।
डॉक्टरों का बचाव:
डॉक्टरों ने कहा कि—
- मनीष ने पहले महिला डॉक्टरों के साथ बदसलूकी की।
- उन्होंने बार-बार आग्रह के बावजूद वीडियो बनाना बंद नहीं किया।
- ऐसे में उन्हें नियंत्रित करना जरूरी हो गया था, ताकि अस्पताल का माहौल खराब न हो।
उन्हें यह प्रतिक्रिया “आत्म-संरक्षण” और “महिला सहकर्मियों की गरिमा बचाने” के लिए करनी पड़ी।
कानूनी दृष्टिकोण से:
- अगर डॉक्टरों ने मारपीट या बंधक बनाने जैसा कोई कार्य किया है, तो यह गंभीर आपराधिक अपराध (IPC की धारा 323, 342, 506 आदि के तहत) हो सकता है।
- वहीं अगर मनीष ने उकसाने या कार्य में बाधा डालने का कार्य किया है, तो उस पर भी कार्रवाई हो सकती है।
निष्कर्ष:
यह “जवाबी कार्रवाई” कितनी न्यायसंगत थी — यह सवाल पुलिस जांच और उपलब्ध साक्ष्यों पर निर्भर करेगा। किसी भी स्थिति में कानून को हाथ में लेना उचित नहीं होता, और इस तरह की घटनाएं लोकतांत्रिक संस्थानों और सार्वजनिक स्थलों की गरिमा को प्रभावित करती हैं।